कई बार बिना गलती के भी
गलती मान लेते हैं हम

क्योंकि डर लगता है कहीं
कोई अपना हमसे रुठ ना जाए

कुछ अलग ही करना है तो वफ़ा करो दोस्त,
वरना मज़बूरी का नाम लेकर बेवफाई तो सभी करते है.

शायरी नही आती मुझे , बस हाल ए दिल सुना रहा हूँ...
बेवफाई का इलज़ाम है मुझपे , फिर भी गुनगुना
रहा हूँ...

बदल ही जाती कहीं... दस्तूर-ए-ज़िदगानी पलट कर...
ग़र मांग लेते वो हमें... इरादों से इजाज़त समझकर

कुछ तो फितरत ही उसकी बेवफाई की थी..
कुछ दिलों की दूरी ने उसे बेगाना बना दिया

कहीं तुम भी न बन जाना किरदार किसी किताब का
लोग बड़े शौक से पड़ते है कहानिया बेवफाओं की.

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